कामिनी भाग 13
रात हो चुकी है, कामिनी और रात्रि अग्नि जलाकर, ठंड से राहत पाने के लिए बैठी हुई है, तब रात्रि ने कहा
"तुम सच में सन्यास धारण करोगी और क्या तुम्हारे नगर की कामुक स्त्रियां, जो प्रतिदिन कई पुरुषों से मिलन करती है, क्या वह तुम्हारी बात मानकर सन्यास धारण करेंगी"?
"अब मेरे जीवन का कोई अर्थ नहीं है, मैं, प्रेम में पराजित वह नागिन हूं, जो सपेरो को ढूंढ रही है"? कामिनी ने रहस्यमय ढंग से कहा
"मैं, तुम्हारे कहने का तात्पर्य समझ नहीं पाई"? रात्रि ने पूछा
"मैं, तुम्हें समझा भी नहीं सकती, हमारी यात्रा की तैयारी करो, हम सुबह कामपुर के लिए निकलेंगे"? कामिनी ने कहा
"मानकराव ने हमारे लिए रथ का प्रबंध कर दिया है, रात काफी हो चुकी है, चलो, अब सो जाते हैं"! रात्रि ने कहा
फिर दोनों अपने कक्ष में आकर सो जाती है और सुबह की पहली किरण के साथ, रथ में सवार होकर कामपुर के लिए रवाना होती है, सफर करते हुए, वह दोनों उस स्थान के सामने से गुजरती है, जहां उन्होंने उन व्यापारियों की हत्या की थी, कामिनी ने रथ रुकवाया और घटनास्थल की और बड़ी, तो रात्रि ने कहा
"वहां मत जाओ"!
पर कामिनी उस स्थान पर गई और वहीं पर बैठ गई, काफी समय हो जाने के बाद, रात्रि रथ से उतरकर कामिनी के पास आई और उसने पूछा
"क्या हुआ"?
तब कामीनी ने उठकर, रात्रि की कमर को कसकर पकड़ा और उसे नजदीक लाकर, उसके होंठो को चुम्मा, कामिनी की यह हरकत रात्रि को बुरी लगी और उसने कहा
"पागल हो गई हो क्या"?
कामिनी ने दोबारा रात्रि के होठों का चुंबन लिया, तब रात्रि ने गुस्सा होकर, कामिनी को एक तमाचा मारा.तब कामिनी की बात सुनकर, रात्रि का होश उड़ गया, कामिनी ने पुरुष की आवाज में कहा
"मेरे शरीर की मृत्यु हुई है, इच्छाओं की नहीं, सुंदरी,,,,,मेरी इच्छाए अभी भी जीवित है, अपने वस्त्र निकालकर, मेरी बाहों में आ जाओ"!
रात्रि तत्काल समझ जाती है कि उन व्यापारियों के सायें कामिनी के शरीर में प्रवेश कर चुके हैं, इसीलिए वह कामीनी का हाथ पकड़ कर, उसे रथ में बिठाती है और वह आगे बढ़ते हैं, कुछ दूर जाने के बाद, कामिनी सामान्य अवस्था में आ जाती है
कामिनी अपनी सखी रात्रि के साथ कामपुर पहुंचती है और अपने महल के द्वार पर आती है तो उसे अपनी मां दिखाई देती है, मां को देखकर कामिनी की नजर अपने आप झुक जाती है, मां क्रोध से कामिनी की ओर देख रही है, जैसे ही कामीनी, मां के नजदीक आती है तो मां उसे एक तमाचा मारती है और कहती है
"इस नगर में जो मेरी आज्ञा का पालन नहीं करता है, उसे राजद्रोह घोषित कर, नगर के बाहर निकाल दिया जाता है और तुमने, मेरी पुत्री होकर, मेरी आज्ञा की अव्हेलना की, तुम्हें और तुम्हारी सखी को इस अपराध का दंड मिलेगा, 2 दिन के भीतर, अगर तुम दोनों ने 2000 स्वर्ण मुद्राएं, राजकोष में जमा नहीं कराई तो तुम्हें 6 मास का कारावास दिया जाएगा"?माँ ने स्पष्ट कहा
"माँ,,,,में इतनी स्वर्ण मुद्राएं कहां से लाऊंगी"? कामिनी ने आश्चर्य से पूछा
उत्तर देश के राजा नागदेव, तुम्हारी सुंदरता पर मोहित है ओर तुम से मिलन के लिए व्याकुल भी, उनसे मिलन कर लो, वह तुम्हें, मुंह मांगा उपहार देने के लिए उत्सुक है"! माँ ने स्पष्ट कहा
"मां,,,तुम मुझे भी इस नरक के व्यापार में धकेलना चाहती हो, अपनी पुत्री को इस तरह विवश करते हैं, आपको शर्म नहीं आती"! कामिनी ने पूछा
"तुम जब तक मेरी आज्ञा का पालन करती थी, तब तक ही मेरी पुत्री थी, अब तुमने, मेरी पुत्री होने का अधिकार खो दिया है, कामपुर का कानून, सबके लिए समान है, फिर चाहे वह में स्वयं ही क्यों ना हो"?"मेरा निर्णय अटल है,तुम अपने निर्णय का चुनाव कर लो"! माँ ने जाते हुए कहा
"मैं मृत्यु का चयन कर लूंगी पर नागदेव जैसे वासना के भूखे भेड़िए को अपना तन नहीं सोपुंगी"!कामिनी ने चिल्ला कर कहा
"यह नागदेव कौन है"? रात्रि ने पूछा
"हाथी जैसा शरीर,भैंसे जैसा रंग है उसका, कई युवतियों के मिलन के उपरांत प्राण ले चुका है, मेरी,मां एक वेश्या है और वेश्या के हृदय में करुणा नहीं होती है, रात्रि,,,तू एक काम कर, कहीं से विश लेकर आ जा"!
"मैं, तुम्हारी सखी हूं,शत्रु नहीं, इसलिए मैं,तुम्हें विश लेकर नहीं दे सकती"!रात्रि ने कहा
"अरे,,,,मैं स्वयं लिए विश, थोड़ी मांगा रही हूं"!
"फिर किसके लिए"? रात्रि ने आश्चर्य से पूछा
"जिसे विश की तत्काल आवश्यकता है"!कामीनी ने रहस्यमय ढंग से कहा
रात हो चुकी है, कामिनी अपने कक्ष में बैठी रो रही है, तभी उसकी मां आती है और कहती है
"एकांत"!
फिर रात्रि उसे कमरे से बाहर चली जाती है
"मेरी प्यारी पुत्री"! मां ने कामिनी के गालों को छूते हुए कहा
कामिनी ने झटके से अपना मुंह हटाया और कहा
"माता,,,,अपनी संतान के लिए भगवान के समान होती है पर जब भगवान ही अपनी, संतान के साथ अन्याय करें तो फिर माँ भगवान तो दूर, माँ कहलाने के योग्य भी नहीं होती है"! कामिनी ने गुस्से से कहा
"ऐसा क्या अन्याय कर दिया, मैंने अपनी प्यारी पुत्री के साथ"! मां ने प्रेम पूर्वक कहा
"आप उस राक्षस रूपी, नागदेव से धन के लोभ में मेरा मिलन कराना चाहती है, मैं अपने प्राण त्याग दूंगी पर उसके साथ मिलन नहीं करूंगी"! कामिनी ने स्पष्ट कहा
"अरे,, मेरी प्यारी पुत्री, तू सयानी तो बहुत है पर उतनी ही भोली भी है, नागदेव से मिलन जरूर होगा पर तुम्हारा नहीं, तुम्हारी सखी रात्रि का, कामपुर की प्रमुख होने के नाते, मुझे वह नाटक करना पड़ा, तुझ में तो मेरे प्राण बसते हैं, मैं, तेरे कोमल शरीर को उस राक्षस के सूपुर्द कैसे कर सकती हूं"? मां ने समझाते हुए कहा
"तो फिर मेरी सखी रात्रि की बलि क्यों चढ़ा रही हो, वह तो मेरी दासी है, मेरे आदेश का पालन करती है,उसके साथ यह अनेतिकता क्यों"? कामिनी ने पूछा
"दासी का कर्तव्य, अपनी स्वामिनी की आदेश का पालन करना होता है, देदो उसे आदेश, नागदेव के साथ मिलन का"! मां ने जाते हुए कहा
रात्रि ने इन दोनों की वार्तालाप पर्दे के पीछे छुपकर सुनी, मां के जाने के बाद ,वह कामिनी के सामने आई, तब कामीनी ने कहा
"रात्रि तुम तैयार हो जाओ"!
रात्रि ने गुस्से से कामिनी की ओर देखा
"क्या रात्रि नागदेव से मिलन के लिए राजी हो जाएगी"?
"क्या कमीनी, रात्रि को नागदेव से मिलन के लिए राजी कर पाएगी"?
आखिर कैसे बनी कामिनी, पिशाचिनी"?
अपने सभी द्वंद्व और प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए, पढ़ते रहिए, "कामीनी एक अजीब दास्तां"!
Gunjan Kamal
16-Nov-2023 10:34 PM
शानदार भाग
Reply